सृष्टि की रचना के प्रयोजन को जानने की उत्कण्ठा अति प्राचीनकाल से मानव-चिन्तन को झकझोरती रही है। इस रहस्य को जानने की जिज्ञासा ने सभ्यता के शैशवकाल से ही बौद्धिक विकास के साथ-साथ समस्त दार्शनिक चिन्तन को दिशा-निर्देशित किया है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, यह कहाँ से आया, क्या यह सदैव से अस्तित्व में था या इसका कोई रचयिता है, क्या विश्व पटल पर बुद्धिजीवी मनुष्य का प्रादुर्भाव मात्र एक सांयोगिक घटना है अथवा मनुष्य के लिए ब्रह्माण्ड की रचना की गई, आदि अनेक ऐसे गूढ़ प्रश्न हैं जिनके विवेचन के लिए शास्त्रों की रचना की गई। ऐसा लगता है, अति प्राचीनकाल में भारत के (मन्त्रद्रष्टा) ऋषि अपनी आध्यात्मिक क्षमताओं को विकसित करके ऐसे निष्कर्षों पर पहुंचे जो आधुनिक समय में प्रस्तावित ब्रह्माण्ड के विभिन्न मॉडेलों के काफी अनुरूप हैं। यह निश्चय ही एक सुखद आश्चर्य है। भारतीय वाङ्मय में अनेक ऐसे प्रसंग बिखरे पड़े हैं जिनमें एक दोलनकारी ब्रह्माण्ड की कल्पना की गई है।