सर्वाधिक युवा जनसंख्यावाले हमारे देश की यह युवा पीढ़ी नई खुली आर्थिक नीतियों के साथ जवान हुई है। इस स्थिति से सभी क्षेत्रों में बदलाव लाया है। वित्तीय क्षेत्र का परिदृश्य पहले की तुलना में पूर्णतया बदल चुका है। औसत युवा भारतीय की आदत में कंज्यूमरिज्म शामिल हो चुका है। उसके निवेश को लेकर मानसिकता भी बदली है। यही कारण है कि हमारी अर्थव्यवस्था की तेजी के प्रत्येक दौर के साथ बाजार से नए रिटेल इन्वेस्टर्स जुड़ते जा रहे हैं। नया निवेशक इकोनॉमी की ग्रोथ में भागीदार बनकर अपना हिस्सा प्राप्त करना चाहता है। लेकिन विडंबना यह है कि जितनी तेजी से निवेशकों की संख्या बढ़ी है, उसके अनुरूप
* वित्तीय साक्षरता का फैलाव नहीं हो पाया। इस असमानता के चलते अधिकांश नए निवेशक शेयर बाजार का फायदा उठाने में कामयाब नहीं हो पाए। वित्तीय साक्षरता की इस कमी तथा इससे उत्पन्न निवेश संबंधी आत्मविश्वास की कमी ने मुझे संभावित निवेशकों के मार्गदर्शन के लिए यह पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया।
मेरे पिता श्री पी.सी. व्यास भारतीय स्टेट बैंक के वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। इस कारण से वित्तीय साक्षरता का महत्त्व मैंने निकट से जाना।
सोभाग्य से मुझे नवभारत टाइम्स में संपादक के रूप में श्री शवंतीण त्रिपाठी जैसे व्यक्ति के सानिध्य में कार्य करने का अवसर मिला। इन्होंने मुझ पर भरोसा करके अखबार के माध्यम से वित्तीय साक्षरता फैलाने का अवसर प्रदान किया। इन सभी अवसरों तथा अनुभवों से प्राप्त सूचनाओं तथा ज्ञान की मैने पुस्तक के रूप में पिरोया है।